बीड क्षेत्र में मराठा आरक्षण आंदोलनकारियों के खिलाफ मामले, आरक्षण, रेल लाइन प्रमुख मुद्दे

 बीड क्षेत्र में मराठा आरक्षण आंदोलनकारियों के खिलाफ मामले, आरक्षण, रेल लाइन प्रमुख मुद्दे

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को जीएसटी कानून के तहत नोटिस व गिरफ्तारी का आंकड़ा पेश करने को कहा

उत्तराखंड वन विकास निगम अध्यक्ष कैलाश गहतोड़ी का निधन

छत्रपति संभाजीनगर
मराठा आरक्षण आंदोलनकारियों के खिलाफ दर्ज मामले, बीड-अहमदनगर रेलवे लाइन की धीमी प्रगति और धनगर समुदाय के लिए आरक्षण महाराष्ट्र के बीड लोकसभा क्षेत्र में प्रमुख मुद्दे हैं। इस सीट पर 13 मई को मतदान होना है।

मध्य महाराष्ट्र का यह जिला पिछले साल उस समय खबरों में था जब मराठा आरक्षण आंदोलन ने यहां हिंसक रूप ले लिया था। मराठा समुदाय के लोग नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण की मांग को लेकर आंदोलन कर रहे थे। इस दौरान कुछ नेताओं के घरों पर हमले भी हुए थे।

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने इस सीट से राज्य की पूर्व मंत्री पंकजा मुंडे को उम्मीदवार बनाया है। पिछले 15 वर्षों में, वह मुंडे परिवार की तीसरी सदस्य हैं जो यहां से चुनाव मैदान में हैं।

उनके पिता और भाजपा के दिग्गज नेता गोपीनाथ मुंडे ने 2009 और 2014 में इस सीट से जीत हासिल की थी। वहीं उनकी छोटी बहन प्रीतम मुंडे ने अपने पिता की मृत्यु के बाद इस सीट के लिए हुए उपचुनाव में जीत हासिल की थी। उन्होंने 2019 के लोकसभा चुनाव में भी इस सीट पर जीत हासिल की।

इस बार भाजपा ने प्रीतम मुंडे का टिकट काटकर पंकजा मुंडे को चुनाव मैदान में उतारा है। उनका मुख्य मुकाबला राकांपा (शरद पवार) के बजरंग सोनावणे से है।

वरिष्ठ पत्रकार दत्ता देशमुख ने कहा, ‘मराठा आरक्षण आंदोलन और इस अवधि के दौरान दर्ज किए गए लगभग 200 मामले इस चुनाव में एक बड़ा मुद्दा हैं। प्रीतम मुंडे को बदलकर पंकजा मुंडे को उम्मीदवार बनाया जाना भी एक मुद्दा है क्योंकि वह इस सीट से दो बार अच्छे अंतर से जीत चुकी थीं।’’

उन्होंने कहा कि उद्योग और नौकरियों की कमी और धनगर समुदाय की आरक्षण की मांग भी महत्वपूर्ण मुद्दे हैं।

धनगर समुदाय अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मांग कर रहा है।

एक अन्य पत्रकार बालाजी मारगुडे ने कहा कि बीड लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र में जातिगत समीकरण भी मायने रखते हैं।

उन्होंने कहा, ‘यहां स्कूल जाने वाले बच्चे भी जाति के बारे में बात करते हैं।’ उन्होंने कहा कि विकास के मुद्दों पर शायद ही कभी चर्चा होती हो। उन्होंने कहा कि मराठा आरक्षण आंदोलन के कारण जाति के मुद्दे पर ज्यादा जोर है।

 

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को जीएसटी कानून के तहत नोटिस व गिरफ्तारी का आंकड़ा पेश करने को कहा

नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के प्रावधानों के तहत जारी किए गए नोटिस और गिरफ्तारियों का ब्यौरा मांगा है। इसके साथ ही कोर्ट ने कहा कि वह कानून की व्याख्या कर सकता है तथा स्वतंत्रता से वंचित करने वाले किसी भी उत्पीड़न से नागरिकों के बचाव के लिए उचित दिशानिर्देश दे सकता है। न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति एमएम सुंदरेश और न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी की विशेष पीठ ने जीएसटी की धारा 69 में अस्पष्टता पर चिंता जतायी जो गिरफ्तारी की शक्तियों से संबंधित है। पीठ जीएसटी अधिनियम, सीमा शुल्क अधिनियम और धनशोधन रोकथाम कानून (पीएमएलए) के विभिन्न प्रावधानों को चुनौती देने वाली 281 याचिकाओं की सुनवाई कर रही है।

पीठ ने कहा कि अगर जरूरत हुई तो वह स्वतंत्रता को "मजबूत" बनाने के लिए कानून की व्याख्या करेगी, लेकिन नागरिकों को परेशान नहीं होने देगी। उसने केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू से कहा, "आप जीएसटी अधिनियम के तहत पिछले तीन वर्ष में एक करोड़ रुपये से पांच करोड़ रुपये की कथित चूक के लिए जारी किए गए नोटिस और गिरफ्तारियों का आंकड़ा पेश करें। लोगों का उत्पीड़न हो सकता है और हम इसकी इजाजत नहीं देंगे।

यदि हमें लगता है कि प्रावधान में कोई अस्पष्टता है तो हम उसे दुरुस्त करेंगे। दूसरा, सभी मामलों में लोगों को जेल नहीं भेजा जा सकता।'' कुछ याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ वकील सिद्धार्थ लूथरा ने जीएसटी व्यवस्था के तहत अधिकारियों की शक्तियों के कथित दुरुपयोग का मुद्दा उठाया और कहा कि इससे व्यक्तियों की स्वतंत्रता कम हो रही है। इसके बाद पीठ ने आंकड़ा पेश करने को कहा।  हुई सुनवाई के दौरान लूथरा ने कहा कि कभी-कभी गिरफ्तारी नहीं की जाती है, लेकिन लोगों को नोटिस जारी कर व गिरफ्तारी की धमकी देकर "परेशान" किया जाता है।

राजू ने कहा कि वह केंद्रीय जीएसटी कानून के तहत जारी नोटिस और की गई गिरफ्तारी के संबंध में आंकड़े एकत्र करेंगे लेकिन राज्यों से संबंधित ऐसी जानकारी जुटाना मुश्किल है। पीठ ने कहा, ''हम सभी आंकड़े चाहते हैं। जीएसटी परिषद के पास वह आंकड़ा होगा। यदि आंकड़ा उपलब्ध है, तो हम इसे अपने सामने चाहते हैं।'' मामले में अगली सुनवाई नौ मई को होगी। राजू ने कहा कि अगली सुनवाई के दिन वह वह पीठ के सवालों का जवाब देने की कोशिश करेंगे।

उत्तराखंड वन विकास निगम अध्यक्ष कैलाश गहतोड़ी का निधन

देहरादून
 उत्तराखंड वन विकास निगम के अध्यक्ष एवं पूर्व विधायक कैलाश गहतोड़ी का शुक्रवार की सुबह यहां अस्पताल में निधन हो गया। लम्बे समय से कैंसर रोग से पीड़ित गहतोड़ी पिछले कुछ दिनों से दून मेडिकल कालेज अस्पताल में उपचार के लिए भर्ती थे जहां आज करीब 07.00 बजे उन्‍होंने अंतिम सांस ली। उनके परिजन पार्थिव शरीर को लेकर काशीपुर रवाना हो गए हैं।

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने गहतोड़ी के निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है।
धामी ने सोशल मीडिया पर अपने पोस्ट में कहा , “वन विकास निगम के अध्यक्ष, पूर्व विधायक, प्रिय मित्र और बड़े भाई कैलाश गहतोड़ी जी के निधन का पीड़ादायक समाचार सुन स्तब्ध हूं। कैलाश जी का जाना संगठन, प्रदेश के साथ-साथ मेरे लिए भी व्यक्तिगत क्षति है। इस असीम कष्ट को शब्दों में बयान नहीं कर पा रहा हूँ। उन्होंने अपना पूरा जीवन जनसेवा में खपा दिया। वह आदर्श जनप्रतिनिधि के रूप में सदैव याद किए जायेंगे। एक विधायक के रूप में चम्पावत क्षेत्र के विकास के प्रति उनका समर्पण हमारे लिए प्रेरणास्रोत है।”

उन्होंने आगे कहा , “राजनीति और जनसेवा के क्षेत्र में उनसे मिला सानिध्य इतना आत्मीय और हृदय के निकट था कि आज विश्वास करना अत्यंत कठिन है कि वह हमारे बीच नहीं हैं। एक अच्छे मित्र और बड़े भाई के रूप में वह सदैव याद आएंगे। चम्पावत के विकास को लेकर जो आपके संकल्प थे, उन्हें पूर्ण करने की दिशा में हम समर्पित होकर कार्य करेंगे। ईश्वर से पुण्यात्मा को श्रीचरणों में स्थान एवं शोक संतप्त परिजनों को यह अपार कष्ट सहने की शक्ति प्रदान करने की कामना करता हूं। विनम्र श्रद्धांजलि।
गौरतलब है कि गहतोड़ी ने अपनी जीती हुई विधायक सीट धामी को उपचुनाव लड़ने के लिए छोड़ी थी।