नई दिल्ली
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच सोमवार को लंबी फोन कॉल हुई। इसमें जिनपिंग ने ताइवान पर अपने अधिकार की बात कही, जिस पर ताइवान के पीएम ने रिएक्ट किया। वहीं सुर्खियों में मंगलवार (25 नवंबर) को जापानी पीएम साने ताकाइची और ट्रंप की बात-चीत भी है। चीन के आधिकारिक बयान के अनुसार, शी ने इस बातचीत में जोर देकर कहा कि ताइवान का “चीन में वापस आना” द्वितीय विश्व युद्ध के बाद बने अंतरराष्ट्रीय क्रम का एक अभिन्न हिस्सा है। सिन्हुआ के अनुसार शी ने ट्रंप से स्पष्ट कहा कि 'ताइवान की वापसी' को लेकर बीजिंग का रवैया स्पष्ट है और वो इसे पोस्ट वॉर अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था के अनुकूल मानता है।
जब यह बयान सामने आया, तो ताइवान के प्रधानमंत्री चू जंग ताई ने शी के विचार को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि ताइवान के 23 मिलियन लोगों के लिए किसी “वापसी” का विकल्प ही नहीं हो सकता। उन्होंने संसद के बाहर पत्रकारों से बातचीत में कहा कि उनका देश स्वतंत्र है।
तो वहीं, ताकाइची ने जापानी मीडिया से बातचीत में कहा कि राष्ट्रपति ट्रंप ने उन्हें कभी कॉल करने की खुली छूट दी और ये भी कहा कि आप मेरी अच्छी दोस्त हैं। ताकाइची ने कहा कि यह कॉल ट्रंप के अनुरोध पर हुई थी, जिसमें उन्होंने अपने और जापान-की स्थिति पर विचार किया। अमेरिकी अधिकारी इस मामले में थोड़े सतर्क बने दिखे क्योंकि ट्रंप ने अपनी सोशल-मीडिया पोस्ट में कुल मिलाकर यह कहा कि चीन-संयुक्त रिश्ते “बहुत मजबूत” हैं, लेकिन उन्होंने ताइवान का नाम नहीं लिया।
जापानी मीडिया ताइवान पर ट्रंप की चुप्पी पर सवाल खड़े कर रहा है। जापान टुडे ने कुछ विशेषज्ञों के हवाले से लिखा है कि ट्रंप शायद खुल कर इसलिए नहीं बोल रहे क्योंकि उन्हें चीन के साथ अपनी ट्रेड डील की फिक्र है। हो सकता है इस वजह से ताइवान को लेकर वो कुछ न कहें और इस कदम से बीजिंग को हिम्मत मिल सकती है। नतीजतन, पूर्वी एशिया में नया संघर्ष शुरू हो सकता है। ये पूरी घटना बताती है कि चीन जापान-ताइवान-अमेरिका त्रिकोण में ताइवान को लेकर अधिक दबाव बनाना चाहता है, जबकि अमेरिका जापान के साथ अपनी गठबंधन-स्थिति को संभालते हुए चीन के साथ व्यापार व रणनीतिक संबंधों को आगे ले जाना चाहता है।

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