
नई दिल्ली
देशभर में वाहनों की संख्या 2050 तक दोगुने से अधिक हो जाएगी। 2023 में 22.6 करोड़ के मुकाबले ये संख्या बढ़कर 2050 तक करीब 50 करोड़ हो जाएगी। यह जानकारी काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वाटर (सीईईडब्ल्यू) की ओर से जारी नए अध्ययनों की एक शृंखला से सामने आई है। इन अध्ययनों के अनुसार, दोपहिया वाहनों की संख्या सर्वाधिक रहेगी। 2050 तक अपेक्षित जीडीपी और जनसंख्या वृद्धि पर आधारित सामान्य परिस्थिति परिदृश्य के अनुसार, 2050 तक सभी वाहनों का लगभग 70 प्रतिशत यानी 35 करोड़ से अधिक दोपहिया होंगे।
निजी कारों की संख्या भी तीन गुना बढ़ने का अनुमान
निजी कारों की संख्या भी लगभग तीन गुना बढ़ने का अनुमान है, जो सदी के मध्य तक नौ करोड़ तक पहुंच जाएगी। सीईईडब्ल्यू के अध्ययन देश की वाहन संख्या, कुल स्वामित्व लागत और परिवहन ईंधन मांग के बारे में अपनी तरह का पहला जिला-स्तरीय अनुमान उपलब्ध कराते हैं। देश की वाहन संख्या में अधिकांश वृद्धि उत्तरी और पश्चिमी राज्यों में केंद्रित रहेगी। अकेले उत्तर प्रदेश में नौ करोड़ से अधिक वाहन होंगे। बिहार, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और गुजरात भी प्रमुख वृद्धि की स्थिति में हैं, जबकि दक्षिणी राज्यों में कम जनसंख्या स्तर के कारण एक ठहराव दिखाई देगा।
दिल्ली, बेंगलुरु, ठाणे, पुणे आदि में अधिक होंगे वाहन
दिल्ली, बेंगलुरु, ठाणे, पुणे और अहमदाबाद जैसे नगरीय और उपनगरीय क्षेत्र आगे रहेंगे, जहां 2050 में भारत की कुल अनुमानित वाहन संख्या के 10 प्रतिशत वाहन होंगे। अध्ययनों के अनुसार, 2024 में मध्यम और भारी वाहनों के लिए इलेक्ट्रिक वाहन अभी भी डीजल, सीएनजी या एलएनजी से अधिक महंगे हैं।
ग्रीन फ्यूल में प्रगति नहीं हुई तो 2040 में अधिक होगी डीजल की मांग
उम्मीद है कि 2040 तक एलएनजी बसों और ट्रकों के लिए सबसे सस्ता ईंधन विकल्प बनी रहेगी। इसलिए भारी माल वाहन श्रेणियों में ईवी और ग्रीन हाइड्रोजन जैसे हरित ईंधनों को बड़े पैमाने पर उपयोग में लाने के लिए लक्षित रूप से शोध एवं विकास करने, सहायक बुनियादी ढांचा तैयार करने और लागत घटाने की जरूरत होगी। इलेक्ट्रिफिकेशन, बुनियादी ढांचे और ग्रीन फ्यूल में तत्काल प्रगति नहीं होने पर डीजल 2040 के दशक तक भारत के सड़क परिवहन ईंधन की मांग में प्रमुख रहेगा।उत्सर्जन घटाने और परिवर्तन को रफ्तार देने के लिए, भारत को बस और ट्रक श्रेणियों में इलेक्ट्रिक और एलएनजी वाहनों को तेजी से अपनाने को प्राथमिकता देनी चाहिए, जिनकी 2050 में परिवहन से जुड़े उत्सर्जन में लगभग 70 प्रतिशत हिस्सेदारी होगी।
बैटरी निर्माण के लिए शोध और निवेश पर देना होगा ध्यान
इसके साथ, लागत घटाने के लिए बैटरी निर्माण के लिए घरेलू शोध एवं विकास में निवेश करने पर भी ध्यान देना होगा। सीईईडब्ल्यू के विशेषज्ञ हेमंत माल्या व डा हिमानी जैन अध्ययन के अनुसार स्वच्छ परिवहन की दिशा में बदलाव को तेज करने के लिए, भारत को अलग-अलग वाहनों से जुड़े आंकड़ों को विशेष रूप से वाहन पोर्टल के माध्यम से – मजबूत करना चाहिए और जिला-स्तरीय सूचना में कमी को दूर करना चाहिए। सार्वजनिक बैंकों और एनबीएफसी के जरिए बैटरी वित्तपोषण माडल जैसे किराए पर या ईएमआई के साथ, ईवी को किफायती बनाना बहुत जरूरी है।
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