‘जिस अस्पताल से नवजात चोरी हों, तुरंत लाइसेंस रद्द होने चाहिए…’, सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी

नई दिल्ली

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अगर किसी नवजात बच्चे को हॉस्पिटल से चुराया जाता है तो सबसे पहले उस अस्पताल का लाइसेंस सस्पेंड होना चाहिए. कोर्ट ने यह टिप्पणी दिल्ली- एनसीआर में नवजात बच्चों की तस्करी के गैंग के पर्दाफाश से जुड़ी खबर पर संज्ञान लेते हुए की.

सुप्रीम कोर्ट ने यूपी के बच्चों की तस्करी के मामले में आदेश सुनाया और दिल्ली में इस गैंग के पकड़े जाने की घटना का जिक्र किया है. कोर्ट ने कहा कि दिल्ली गैंग के पर्दाफाश की घटना अपने आप मे हतप्रभ कर देने वाली है और कोर्ट के दखल की जरूरत है.

कोर्ट ने दिल्ली पुलिस से इस बारे में स्थिति जांच रिपोर्ट भी तलब की है. कोर्ट ने पुलिस से पूछा है कि दिल्ली के अंदर और बाहर से सक्रिय इस तरह के बच्चा चोर गिरोहों से निपटने के लिए उनकी ओर से क्या कदम उठाए जा रहे हैं?

कोर्ट ने स्वतः संज्ञान के मामले पर अगली सुनवाई 21 अप्रैल को तय कर दी है. जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की बेंच अस्पतालों से बच्चा चोरी करने वाले गिरोह से जुड़े एक मामले में जमानत को लेकर दाखिल याचिका पर सुनवाई कर रही थी. सुप्रीम कोर्ट में इस मामले में सभी आरोपियों को निचली अदालत में सरेंडर करने को कहा. साथ ही सीजेएम वाराणसी और एसीजेएम वाराणसी को निर्देश दिया कि दो सप्ताह के भीतर सत्र न्यायालय में मामले दर्ज किया जाए और एक सप्ताह के भीतर चार्ज फ्रेम किया जाए.

इसके अलावा इस मामले से जुड़े कुछ आरोपी फरार हैं तो उनके खिलाफ ट्रायल कोर्ट गैर जमानती वारंट जारी किया जाए. साथ ही कोर्ट ने तस्करी किए गए बच्चों को RTE के तहत स्कूल में भर्ती कराया जाता है और उन्हें शिक्षा प्रदान करना जारी रखता है. ट्रायल कोर्ट बीएनएसएस और यूपी राज्य कानून के तहत मुआवजे के संबंध में आदेश पारित करने के लिए भी निर्देश दिया.

इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने देश के सभी हाई कोर्ट को बाल तस्करी के मामलों में लंबित मुकदमे की स्थिति की जानकारी लेने का निर्देश देते हुए कहा कि लंबित मुकदमों को छह महीने में परीक्षण पूरा करने और मामलों के प्रतिदिन सुनवाई के आधार पर किए जाएंगे. कोर्ट ने यह भी कहा कि हमारे द्वारा जारी निर्देशों को लागू करने में बरती गई किसी भी ढिलाई को गंभीरता से लिया जाएगा और उसे अवमानना के रूप में माना जाएगा.

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को बाल तस्करी के मामलों से निपटने के तरीके को लेकर यूपी के प्रशासन की आलोचना की और ऐसे अपराधों को रोकने के लिए राज्यों को सख्त दिशा-निर्देश दिए. बेंच ने निचली अदालतों को ऐसे मामलों की सुनवाई छह महीने के भीतर पूरी करने का आदेश दिया. साथ ही अधिकारियों को निर्देश दिया कि यदि किसी नवजात की तस्करी होती है तो अस्पतालों के लाइसेंस निलंबित कर दिए जाएं.

शीर्ष अदालत ने कहा, देश भर के हाई कोर्ट को बाल तस्करी के मामलों में लंबित मुकदमों की स्थिति के बारे में जानकारी देने का निर्देश दिया जाता है. इसके बाद 6 महीने में मुकदमे को पूरा करने और दिन-प्रतिदिन सुनवाई करने के निर्देश जारी किए जाएंगे.

सुप्रीम कोर्ट ने यह सख्त टिप्पणी उस मामले की सुनवाई के दौरान की, जिसमें तस्करी करके लाए गए एक बच्चे को उत्तर प्रदेश के एक दंपत्ति को सौंप दिया गया था जो बेटा चाहते थे. इलाहाबाद हाई कोर्ट ने आरोपियों को अग्रिम जमानत दे दी थी.

आरोपियों की जमानत रद्द करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मामले से निपटने के तरीके को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट और उत्तर प्रदेश सरकार दोनों को फटकार लगाई.

बेंच ने कहा, आरोपी को बेटे की चाहत थी और उसने 4 लाख रुपये में बेटा खरीद लिया. अगर आप बेटे की चाहत रखते हैं तो आप तस्करी किए गए बच्चे को नहीं खरीद सकते. वो जानता था कि बच्चा चोरी हुआ है.

शीर्ष अदालत ने कहा कि हाई कोर्ट ने जमानत आवेदनों पर ऐसी कार्रवाई की, जिसके कारण कई आरोपी फरार हो गए.

अदालत ने कहा, ये आरोपी समाज के लिए गंभीर खतरा पैदा करते हैं. जमानत देते समय हाई कोर्ट से कम से कम यह अपेक्षित था कि वो हर सप्ताह पुलिस थाने में उपस्थिति दर्ज कराने की शर्त लगाता. पुलिस सभी आरोपियों का पता लगाने में विफल रही.

सरकार की खिंचाई करते हुए जजों ने कहा, हम पूरी तरह से निराश हैं… कोई अपील क्यों नहीं की गई? कोई गंभीरता नहीं दिखाई गई.

'अस्पतालों का लाइसेंस रद्द होगा'

बाल तस्करी के मामलों को रोकने के लिए दिशानिर्देश जारी करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि कोई नवजात शिशु चोरी होता है तो अस्पतालों का लाइसेंस रद्द कर दिया जाना चाहिए.

अदालत ने आदेश दिया, यदि किसी अस्पताल से नवजात शिशु की तस्करी की जाती है तो पहला कदम ऐसे अस्पतालों का लाइसेंस निलंबित करना होना चाहिए. यदि कोई महिला अस्पताल में बच्चे को जन्म देने आती है और बच्चा चोरी हो जाता है, तो पहला कदम लाइसेंस निलंबित करना होना चाहिए. बेंच ने चेतावनी दी कि किसी भी प्रकार की लापरवाही को गंभीरता से लिया जाएगा. इसे न्यायालय की अवमानना ​​माना जाएगा.