बीजिंग
चीन ने अपनी इकॉनमी में जान फूंकने के लिए हाल में $1.07 ट्रिलियन के भारी-भरकम पैकेज की घोषणा की थी। इसके बाद उसके शेयर बाजारों में काफी तेजी देखने को मिली। कुछ विदेशी निवेशक भारत जैसे देशों से अपना पैसा निकालकर चीन के बाजार में डाल रहे हैं। लेकिन कुछ निवेशकों ने चीन के इस पैकेज की सफलता पर संदेह जताया था और उनकी आशंका सही होने जा रही है। अब तक इस पैकेज का जमीन पर कोई असर होता नहीं दिख रहा है। देश में तीसरी तिमाही में कंज्यूमर प्राइस में गिरावट आई है। लगातार छठी तिमाही में ऐसा हुआ है और यह साल 1999 के बाद इस गिरावट का सबसे लंबा दौर है।
माना जा रहा है कि चीन की इकॉनमी पहले ही मंदी में फंस चुकी है और इससे बाहर निकलने के लिए उसे लंबा समय लग सकता है। चीन में डिफ्लेशन की स्थिति बनी हुई है। 2008 में देश में लगतार पांच तिमाहियों तक डिफ्लेशन की स्थिति रही थी लेकिन इस बार यह उससे भी आगे निकल गया है। पूरी दुनिया महंगाई से त्रस्त है लेकिन चीन में उल्टी गंगा बह रही है। दिक्कत यह है कि डिफ्लेशन को इनफ्लेशन भी बदतर माना जाता है। इसमें चीजों की कीमत में गिरावट आती है। यह इकॉनमी में धन की आपूर्ति और क्रेडिट में गिरावट से जुड़ी होती है।
इकॉनमी की परेशानी
डिफ्लेशन को इकॉनमी के लिए अच्छा संकेत नहीं माना जाता है। अगर आपको पता है कि कल चीजों की कीमत गिरनी है तो आप आज क्यों खरीदारी करेंगे? इस तरह एक प्रकार से इकॉनमी फ्रीज हो जाती है। जापान के साथ 1990 के दशक में यही हुआ था। आज भी जापान उस स्थिति से बाहर नहीं निकल पाया है। चीन की इकॉनमी कई मोर्चों पर संघर्ष कर रही है। बेरोजगारी कई दशक के चरम पर पहुंच गई है, मैन्युफैक्चरिंग में गिरावट आई है और रियल एस्टेट सेक्टर संघर्ष कर रहा है। कंज्यूमर डिमांड कमजोर है। चीन के ग्राहक इस तरह व्यवहार कर रहे हैं जैसे कि देश मंदी में है।
दुनिया के लिए खतरे की घंटी
अमेरिका और चीन के बीच रिश्ते पिछले कुछ साल से ठीक नहीं चल रहे हैं। दोनों देश एकदूसरे की कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई करने में लगे हैं। अमेरिका ने चीन से आयात होने वाली कई वस्तुओं पर ड्यूटी बढ़ा दी है जो अगले चरणों में लागू होगी। चीन में मंदी आने से पूरी दुनिया प्रभावित होगी। इसकी वजह यह है कि पिछले करीब तीन दशक से चीन ग्लोबल इकॉनमी का इंजन बना हुआ है। यही वजह है कि चीन में मंदी की आशंका ग्लोबल इकॉनमी के लिए खतरे की घंटी है।
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