चीन में सत्ता संग्राम तेज, जिनपिंग की 13 साल की बादशाहत पर मंडरा रहा खतरा

बीजिंग 
बीजिंग में बैठा चीन का राष्ट्रपति शी जिनपिंग इन दिनों रहस्यों में घिरा है। ब्राजील में हाल ही में हुए BRICS सम्मेलन से लेकर पार्टी बैठकों तक, हर जगह उनकी गैरमौजूदगी ने नए सवाल खड़े कर दिए हैं। सत्ता के गलियारों में कानाफूसी तेज है कि क्या  72 साल के शी जिनपिंग सत्ता से बेदखल होने की तैयारी में हैं?  या फिर पर्दे के पीछे उनके खिलाफ बगावत का खेल शुरू हो चुका है?

पहली बार BRICS से गायब 
सत्ता में आने के बाद पहली बार ऐसा हुआ कि शी जिनपिंग BRICS समिट से गायब रहे। यह वही नेता हैं जिन्होंने पिछले 13 सालों से चीन पर लोहे की दीवार खड़ी कर रखी है। लेकिन अचानक ब्रिक्स में न जाना और कम्युनिस्ट पार्टी के अहम संगठनों को ज्यादा अधिकार सौंपना दोनों बातें इशारा कर रही हैं कि अंदर कुछ तो गड़बड़ है!

 जिनपिंग की सत्ता में सेंध ?
 चीनी मामलों के भारतीय एक्सपर्ट आदिल बरार  ने ताइवान से बड़ा दावा किया है। उनका कहना है कि शी कहीं नहीं जा रहे, बल्कि पहले से ज्यादा मजबूत हो रहे हैं। लेकिन कई आलोचक इसे उनका ‘डैमेज कंट्रोल’ बयान बता रहे हैं। क्योंकि सच्चाई यही है कि शी को अपनी ही बनाई सत्ता संरचना पर अब शक हो रहा है, तभी तो उन्होंने कुछ करीबी नेताओं को ज्यादा अधिकार सौंप दिए हैं।बरार ने कहा  “दूसरे नेताओं को अधिकार देना उनकी मजबूरी नहीं, बल्कि रणनीति है।” लेकिन सवाल यह है कि अगर शी सच में इतने ताकतवर हैं तो BRICS में क्यों गायब रहे? क्यों पार्टी बैठकों में नए नियम लाकर खुद को ‘औपचारिक रूप से’ मजबूत करना पड़ा?
 
बगावत के बीज और  हकीकत
शी जिनपिंग के खिलाफ बगावत के बीज उनकी ही पार्टी में पनप रहे हैं। पुराने सैन्य जनरल, पार्टी के सीनियर नेता और यहां तक कि कई युवा नेता सब अंदरखाने शी की नीतियों से नाराज बताए जाते हैं। माना जा रहा है कि शी ने जो सत्ता केंद्रीकरण किया, वही अब उनके गले की फांस बन गया है। चीनी राजनीति को करीब से देखने वाले कहते हैं  “शी जितना अपने करीबी लोगों को सत्ता देंगे, उतना ही वो अपने विरोधियों को ताकतवर बना रहे हैं।  सत्ता में उनके भरोसेमंद लोगों के नाम पर जनता में गुस्सा बढ़ रहा है। महंगाई, बेरोजगारी और पाबंदियों से परेशान जनता धीरे-धीरे दबी आवाज़ में शी के खिलाफ बोलने लगी है।

नहीं बचेगा शी जिनपिंग !
30 जून को पार्टी बैठक में पेश किए गए नए नियमों को भी चीन के अंदर ही कई लोग ‘पावर ग्रैब’ नहीं बल्कि ‘डर का सबूत’ मान रहे हैं। दरअसल, ये नियम बताते हैं कि शी को अब अपने ही बनाए सिस्टम पर भरोसा नहीं रहा।  कहीं ऐसा न हो कि यही करीबी लोग कल उनके खिलाफ खड़े हो जाएं! विश्लेषक कहते हैं  “शी जिनपिंग अपने ही बनाए सिस्टम से डरने लगे हैं। यही वजह है कि वो सत्ता में दिख तो रहे हैं लेकिन कमजोर होते जा रहे हैं। चीन में बदलाव की बयार चल पड़ी है, सवाल सिर्फ इतना है वो बदलाव क्रांति बनता है या शी के नए ‘केंद्रीकरण’ में दम तोड़ देता है?” शी जिनपिंग को लेकर अफवाहें इसलिए तेज हैं, क्योंकि चीन की अंदरूनी राजनीति काले पर्दों में छिपी रहती है। वो पर्दा अब उठ रहा है  या तो जिनपिंग खुद हटेंगे, या किसी दिन उनकी सत्ता उनके ही बनाए नियमों में उलझ जाएगी।