पत्नी के निधन के 3 दिन बाद कथा करने पहुंचे मोरारी बापू का विरोध, बोले- सूतक में ठीक नहीं

वाराणसी
कहते हैं जब लालच मन में होता है तो रीति-रिवाज ओर परंपराओं को भी ठेंगा दिखा दिया जाता है। कथावाचक मुरारी बापू पर भी कुछ इसी तरह के आरोप लग रहे हैं। बापू की मानस सिंदूर कथा से पहले ही काशी में विवाद शुरू हो गया है। पत्नी के निधन के 3 दिन बाद रामकथा के लिए काशी पहुंचे मोरारी बापू का विरोध शुरू हो गया है। सूतक में बाबा विश्वनाथ का स्पर्श दर्शन करने और व्यासपीठ से रामकथा का काशी का शंकराचार्य, संत समाज, काशीतीर्थ पुरोहित और वैष्णव संतों में आक्रोश है।
इस पूरे मामले अखिल भारतीय संत समिति के राष्ट्रीय महामंत्री स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने अपनी बात रखी। कहा- सूतक काल में कथा वाचक मोरारी बापू का कथा कहना घोर निंदनीय है। उन्हें इस काल में राम कथा नहीं कहनी चाहिए। उन्होंने धर्म से ऊपर उठकर अर्थ की कामना से इस तरह का कृत्य करना गलत है। ये समाज के लिए निंदनीय है। इससे पहले उन्होंने यह जानते हुए भी कि 32 प्रकार की अग्नि होती है, उन्होंने चिता की अग्नि के सामने फेरे डलवाए थे। व्यास पीठ पर बैठकर अल्लाह-मौला करना उचित नहीं। मंगल का अमंगल से कनेक्शन जोड़ते हैं। 
वहीं मोरारी बापू का कहना है कि वह वैष्णव साधु हैं और उन पर यह नियम लागू नहीं होता है। रविवार को रुद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर में रामकथा के दूसरे दिन मोरारी बापू ने दो मत के भेद को बताया। उन्होंने कहा- बहुत से शब्द ऐसे हैं जिसका मत अलग-अलग होता है। तुलसी दास ने सिंदूर तो कहीं संदूर शब्द का भी प्रयोग किया है। उन्होंने कहा-काशी में लोग विद्वान हैं। उनको मैं प्रणाम करता हूं। स्वामी जितेंद्रानंद ने सवाल उठाए कि ब्रह्मनिष्ठ, ब्रह्मचारी और राजा को सूरत नहीं लगता, तो मोरारी बापू को बताना चाहिए वो किसमें आते हैं? सिर्फ संन्यास परंपरा में ही जीवित खुद का पिंडदान करता है। मोरारी बापू समाज को धोखा न दें, धर्म को धंधे में न बदलें, यही बेहतर होगा। बता दें, शनिवार को रामकथा वाचक मोरारी बापू ने बाबा विश्वनाथ के दर्शन-पूजन किए। जलाभिषेक के बाद वह मंदिर परिसर में 30 मिनट तक रहे। मंदिर प्रबंधन ने उन्हें पूरे कैंपस के बारे में बताया। उन्हें अंगवस्त्र और प्रसाद दिया गया। मोरारी बापू 22 जून तक सिगरा के कन्वेंशन सेंटर में कथा सुनाएंगे। यह बापू की 958वीं राम कथा है।