
ढाका
बांग्लादेश में तख्तापलट का खतरा अभी पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है. दरअसल, कार्यवाहक राष्ट्रपति मोहम्मद यूनुस के राजनीतिक दलों और सेना के साथ हाल की बैठकों और चुनाव की दिशा में कदम उठाने की सहमति से ऐसा लग रहा था कि तख्तापलट का तात्कालिक खतरा टल गया है. पर ऐसा है नहीं, आशंकाएं पूरी तरह खत्म नहीं हुई हैं. सेना का दबाव, विपक्ष का असंतोष, आर्थिक संकट, कट्टरपंथी ताकतें, और विदेशी हस्तक्षेप की आशंकाएं इस देश की स्थिति को नाजुक बनाए हुए हैं. यदि यूनुस दिसंबर, 2025 तक चुनाव की घोषणा नहीं करते या सुधारों में विफल रहते हैं, तो तख्तापलट का खतरा फिर से बढ़ सकता है.
नौ महीने पहले शेख हसीना की सरकार के पतन और मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में अंतरिम सरकार के गठन के बाद से देश में राजनीतिक अस्थिरता बनी हुई है. हाल के घटनाक्रमों से पता चलता है कि सेना प्रमुख जनरल वकार-उज़-ज़मान ने यूनुस सरकार को अवैध घोषित किया है और जल्द चुनाव कराने की मांग की है. यूनुस ने इस्तीफे की धमकी दी है, और उनके समर्थकों ने रैलियां की हैं, जिससे तनाव और बढ़ गया है. ढाका में हिंसक प्रदर्शनों की आशंका भी जताई जा रही है.
पिछले नौ महीनों में बांग्लादेश में राजनीतिक उथल-पुथल, कट्टरपंथी तत्वों का बढ़ता प्रभाव, और सेना व सरकार के बीच टकराव ने तख्तापलट की आशंकाओं को बल दिया है. समाचारों के अनुसार, सेना ने यूनुस को सैन्य मामलों में हस्तक्षेप बंद करने और दिसंबर 2025 तक चुनाव की तारीख घोषित करने का अल्टीमेटम दिया है. दरअसल इन सारी घटनाओं के पीछे मोहम्मद यूनुस की कुर्सी को लेकर बढ़ता प्रेम और अति महत्वाकांक्षा को माना जा रहा है. माना जा रहा है कि यूनुस के कमजोर नेतृत्व ने बांग्लादेश का बंटाधार कर दिया.
बांग्लादेश में बेरोजगारी और महंगाई की स्थिति गंभीर
2024 में शेख हसीना की सरकार के पतन के बाद बांग्लादेश की आर्थिक हालत खस्ता होती जा रही है. विश्व बैंक और ILO के अनुमानों के अनुसार, 2024 में बेरोजगारी दर 5-6% के आसपास रही, लेकिन अनौपचारिक क्षेत्रों में यह अधिक है. खासकर शिक्षित युवाओं में, 15-20% तक बेरोजगारी बढने का अनुमान है. कपड़ा उद्योग, जो देश की अर्थव्यवस्था का आधार है, संकट में है. अगस्त 2024 से 140 से अधिक कपड़ा फैक्ट्रियां बंद हो चुकी हैं, जिससे 1 लाख से ज्यादा लोग बेरोजगार हुए हैं. राजनीतिक अस्थिरता और भारत के साथ व्यापारिक प्रतिबंधों ने स्थिति को और बिगाड़ दिया, जिससे 770 मिलियन डॉलर का नुकसान हुआ है.
महंगाई की बात करें तो, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) आधारित मुद्रास्फीति 2024 में 9-10% तक पहुंच गई है. खाद्य पदार्थों, विशेष रूप से खाद्य तेल और चीनी की कीमतों में भारी उछाल आया. उदाहरण के लिए, खाद्य तेल की कमी ने किराना दुकानों में स्टॉक खत्म कर दिया है, जिससे दैनिक उपभोक्ता वस्तुओं की कीमतें आसमान छू रही हैं. भारत द्वारा कपास निर्यात पर रोक ने कपड़ा उद्योग को ठप कर दिया, जिससे जीडीपी वृद्धि दर 6.3% से घटकर 5% से नीचे आ गई. प्रति व्यक्ति आय में गिरावट और बढ़ते कर्ज ने आम नागरिकों पर बोझ बढ़ाया है, जहां प्रत्येक नागरिक पर औसतन 41,000 रुपये का कर्ज है.
राजनीतिक अस्थिरता, विशेष रूप से मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार और सेना के बीच तनाव, ने आर्थिक सुधारों को प्रभावित किया है. सरकारी कर्मचारी और शिक्षक वेतन न मिलने के कारण हड़ताल पर हैं.
सेना और यूनुस सरकार के बीच तनाव चरम पर
यूनुस ने जनवरी से जून 2026 के बीच चुनाव कराने का सुझाव दिया है, जबकि सेना और बीएनपी दिसंबर 2025 तक चुनाव चाहते हैं. माना जा रहा है कि चुनाव में देरी की वजह यूनुस की सत्ता में बने रहने की इच्छा है.
यूनुस सरकार ने अमेरिका के साथ मिलकर म्यांमार में मानवीय सहायता के लिए एक गलियारा बनाने की योजना बनाई थी, जिसे सेना ने अस्वीकार कर दिया. जनरल वकार ने इसे राष्ट्रीय संप्रभुता के लिए खतरा बताया और बिना सेना की सहमति के इस तरह के फैसले लेने पर आपत्ति जताई.
सेना के अंदर भी दो गुट बन चुके हैं. एक गुट जनरल वकार-उज़-ज़मान का समर्थन करता है, जिन्हें भारत के करीबी माना जाता है, जबकि दूसरा गुट लेफ्टिनेंट जनरल फैज़ुर रहमान का है, जिन्हें पाकिस्तान समर्थित और भारत विरोधी माना जाता है. फैज़ुर रहमान की हाल की पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI के प्रमुख से मुलाकात ने इन आशंकाओं को और बढ़ा दिया है.
यूनुस पर कुछ लोग विदेशी शक्तियों, विशेष रूप से पश्चिमी देशों, का कठपुतली होने का आरोप लगाते हैं. उनके द्वारा भारत के पूर्वोत्तर राज्यों को लैंडलॉक्ड बताने वाले बयान ने भारत के साथ संबंधों में तनाव पैदा किया. इसके अलावा, भारत के साथ 21 मिलियन डॉलर की रक्षा डील रद्द करने के फैसले ने दोनों देशों के बीच अविश्वास को और गहरा कर दिया.
मोहम्मद युनूस के रूप में कमजोर नेतृत्व
मोहम्मद यूनुस, जो नोबेल पुरस्कार विजेता और ग्रामीण बैंक के संस्थापक के रूप में विश्व स्तर पर सम्मानित हैं पर बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के नेता के रूप में सशक्त नेतृत्व प्रदान करने में कई मोर्चों पर कमजोर साबित हुए हैं. अगस्त 2024 में शेख हसीना की सरकार के पतन के बाद यूनुस को अंतरिम सरकार का नेतृत्व सौंपा गया था. लेकिन वे सरकार की आंतरिक और बाहरी चुनौतियों से निपटने में असमर्थ रहे हैं.
मोहम्मद यूनुस को बांग्लादेश की अंतरिम सरकार का नेतृत्व इसलिए सौंपा गया क्योंकि उन्हें एक तटस्थ और सम्मानित शख्सियत माना जाता रहा है. हालांकि, उनकी राजनीतिक अनुभवहीनता उनकी सबसे बड़ी कमजोरी साबित हुई. यूनुस ने पहले कभी कोई सरकारी या प्रशासनिक पद नहीं संभाला, और उनकी माइक्रोफाइनेंस पृष्ठभूमि उन्हें जटिल राजनीतिक और सैन्य परिदृश्यों से निपटने के लिए तैयार नहीं कर सकी.
24 मई, 2025 को बीएनपी और जमात नेताओं के साथ उनकी मुलाकात ने तनाव को कुछ कम किया, लेकिन उनकी अनिर्णयशीलता और स्पष्ट रणनीति का अभाव उनकी कमजोर नेतृत्व शैली को दर्शाता है. एक सशक्त नेता के रूप में, उन्हें विपक्ष और सेना के साथ मजबूत संवाद स्थापित कर त्वरित सुधार लागू करने चाहिए थे, लेकिन उनकी निष्क्रियता ने अस्थिरता को बढ़ाया.
सेना के साथ यूनुस का टकराव उनकी नेतृत्व क्षमता की सबसे बड़ी कमी को उजागर करता है। सेना प्रमुख जनरल वकार-उज़-ज़मान ने यूनुस सरकार को अवैध घोषित किया और म्यांमार में मानवीय गलियारा स्थापित करने की उनकी योजना को खूनी गलियारा करार देते हुए राष्ट्रीय संप्रभुता के लिए खतरा बताया. यूनुस ने इस योजना को लेकर सेना से पहले सलाह नहीं ली, जिससे सेना का गुस्सा भड़का. मोहम्मद यूनुस की नीतिगत गलती ने ही सेना को हस्तक्षेप का बहाना दे दिया है.
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