
नई दिल्ली
लड़ाकू विमानों की कमी से जूझ रहा भारत पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान बनाने को मंजूरी दे चुका है. लेकिन, ये विमान भारतीय वायु सेना को 2035 से पहले नहीं मिल पाएंगे. प्रोडक्शन शुरू करने से पहले विमान को अभी डिजाइन, विकास और परीक्षण की एक लंबी प्रक्रिया से गुजरना पड़ेगा, जो एक बड़ी चुनौती वाला और समय खाने वाला काम है. ऐसे में भारत सरकार के सामने तुरंत इस जरूरत को पूरा करने की चुनौती है. भारतीय एयरफोर्स अब सार्वजनिक तौर पर फाइटर जेट की कमी की बात करने लगी है. दरअसल, चीन और पाकिस्तान से दो मोर्चों पर चुनौतियों का सामना कर रही इंडियन एयरफोर्स को अपनी लड़ाकू क्षमता बनाए रखने के लिए फाइटर जेट्स की 42 स्क्वायड्रन की जरूरत है. एक स्क्वायड्रन में 18 विमान होते हैं. लेकिन, मौजूदा वक्त में एयरफोर्स के पास 32 स्क्वायड्रन बचे हैं. दूसरी तरफ चीन और पाकिस्तान की एयर फोर्स अब पांचवीं पीढ़ी के विमानों से लैस हो रही है. ऐसे में चुनौती तो है. हालांकि, इस चुनौती को सरकार और वायुसेना दोनों समझती है और इसके लिए उचित कदम भी उठाए जा रहे हैं.
चुनौती का दूसरा पहलू
खैर, आज हम इस चुनौती की नहीं बल्कि इससे जुड़े एक अन्य पहलू की बात कर रहे हैं. इसे पहलू भी नहीं बल्कि एक चूक कही जा सकती है. दरअसल, भारत सरकार ने 2007 में रूस के साथ पांचवीं पीढ़ी के फाइटर जेट के निर्माण के लिए एक अंतर सरकारी समझौता किया था. इस समझौते के तहत रूस में सुखोई फाइटर जेट बनाने वाली कंपनी और भारत की सरकारी कंपनी एचएएल एक पांचवीं पीढ़ी के फाइटर जेट का विकास करने वाली थी. इस प्रोजेक्ट को ब्रह्मोस मिसाइल की तरफ आगे बढ़ाना था. ज्ञात हो कि बीते दिनों ऑपरेशन सिंदूर में पाकिस्तान की एयरफोर्स की कमर तोड़ने वाली ब्रह्मोस मिसाइल को रूस के साथ ही मिलकर डेवलप किया गया था.
रिपोर्ट के मुताबिक भारत और रूस ने जिस पांचवीं पीढ़ी के फाइटर जेट की कल्पना की थी वह एक स्टील्थ जेट था. उसमें दो इंजन लगाए जाने थे. उसको हवाई, जमीनी और नौसैनिक टारगेट्स को नष्ट करने के लिए बनाया जाना था. इसके लिए भारत ने 2006 में ही अपनी एक टीम रूस भेज दी थी. समझौते के बाद दिसंबर 2008 में फाइटर जेट की डिजाइन और दिसंबर 2010 में खर्च को लेकर समझौते भी हो गए. भारत और रूस ने 6-6 अरब डॉलर के निवेश से 154 विमानों के उत्पादन की योजना बनाई.
परियोजना में आने लगी अड़चनें
भारत ने रूस से इस परियोजना की तकनीकी समानता और सोर्स कोर्ड साझा करने की मांगी की. सोर्स कोड किसी विमान में सॉफ्टवेयर नियंत्रण प्रणाली होती है. उसी के जरिए भविष्य में विमान में किसी बदलाव को अंजाम दिया जा सकता है. लेकिन, रूस ने इस सोर्स कोड को देने से इनकार कर दिया. फिर बातचीत हुई और इसके लिए रूस ने अतिरिक्त 7 अरब डॉलर की राशि की मांग की. विमानों की संख्या, सोर्स कोड, तकनीकी हस्तांतरण जैसे मुद्दों पर असहमति के कारण 2016 तक भारत की इस परियोजना में दिलचस्पी कम हो गई. फिर भारत ने 2018 में आधिकारिक तौर पर इस परियोजना से निकलने की घोषणा कर दी. भारत ने देसी एएमसीए प्रोग्राम पर ध्यान केंद्रित करने का फैसला किया. इसके साथ ही एयरफोर्स की तत्कालिक जरूरतों को पूरा करने के लिए फ्रांस से 36 राफेल विमान खरीदे गए.
जिस पांचवीं पीढ़ी के फाइटर जेट परियोजना से भारत बाहर हुआ उस पर रूस ने काम जारी रखा. फिर यह सुखोई-57 के रूप में सामने आया. इस विमान में कई ऐसी चीजें हैं जो भारत की जरूरतों के अनुकूल है. इस तरह रूस पांचवीं पीढ़ी के फाइटर जेट बनाने वाला तीसरा मुल्क बन गया. इससे पहले अमेरिका और चीन के पास पांचवीं पीढ़ी के फाइटर जेट हैं.
अब दोनों की मजबूरी
2018 से 2025 आते-आते काफी चीजें बदल चुकी हैं. एक तरफ भारत को इस वक्त पांचवीं पीढ़ी के फाइटर जेट्स की सख्त जरूरत है. वहीं यूक्रेन युद्ध के कारण रूस की आर्थिक स्थिति पूरी तरह चरमरा गई है. वह पैसे के अभाव में इस फाइटर जेट्स का उत्पादन नहीं कर पा रहा है. अभी तक वह इसका केवल 40 यूनिट ही बना पाया है. ऐसे में वह भारत को अब सोर्स कोड और तकनीक ट्रांसफर के साथ इसे देना चाहता है. भारत की जरूरत के हिसाब से बनने वाले फाइटर जेट को सुखोई-57ई नाम दिया गया है. उसने इसका उत्पादन भी भारत ने करने की बात कही है. इसे एचयूएल के मौजूदा प्लांट में आसानी से बनाया भी जा सकता है.
क्या एफ-35 और जे-20 से कमतर है सुखाई-57
परियोजना से बाहर निकलने के वक्त से कुछ जानकार इस फाइटर जेट्स की कमी को उजागर करते रहे हैं. द हिंदू और द इंडियन एक्सप्रेस अखबार की कुछ रिपोर्ट को मानें तो वायु सेना ने इस फाइटर जेट्स की रडार क्रॉस-सेक्शन और स्टील्थ क्षमता पर सवाल उठाया था. भारत ने इस विमान में ऐसे 43 तकनीकी सुधार की मांग की थी, जिसे रूस ने स्वीकार करने से इनकार कर दिया था.
राजनीतिक कारण
एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत ने रूस के साथ संबंधों को संतुलित करने के लिए पश्चिमी देशों के साथ रक्षा सहयोग बढ़ाया. इसके पीछे का एक कारण चीन के साथ रूस का गठजोड़ रहा है. रूस और चीन के बीच लगातार मजबूत होते गठजोड़ के कारण भारत चिंतित रहता है. ऐसे में भारत को डर था कि रूस कहीं इस पांचवीं पीढ़ी के फाइटर जेट की तकनीक को चीन के साझा न कर दे.
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