चंडीगढ़
पंजाब हरियाणा हाई कोर्ट ने तलाक के एक मामले में फैसला सुनाते हुए कहा कि अगर परिवार के साथ नहीं रहना और आपस में कुछ समझौते नहीं करना है तो तलाक ही ठीक है। कोर्ट ने कहा कि महिला को पता है कि उसकी 75 साल की सास है और एक मानसिक रूप से बीमार ननद है। इसके बावजूद वह गांव में परिवार के साथ नहीं रहना चाहती है। कोर्ट ने कहा कि जब कोई भी शादीशुदा जीवन में प्रवेश करता है तो उसे उस हिसाब से कुछ परिवर्तन करने पड़ते हैं।
जस्टिस सुधीर सिंह और जस्टिस हर्ष बुंगेर की बेंच ने कहा, शादीशुदी जीवन में कुछ स्वतंत्रताओं को सरेंडर करना पड़ता है जो कि दोनों के हित से जुड़ी होती हैं। अगर किसी दंपती का कोई बच्चा है तो उसे भी कुछ समझौते करने पड़ते हैं। ट्रायल कोर्ट ने पहले ही पति की याचिका पर तलाक की अनुमति दे दी थी। महिला ने तलाक के आदेश के खिलाफ हाई कोर्ट का रुख किया था। हाई कोर्ट ने महिला की अर्जी खारिज कर दी।
बार ऐंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक दोनों की शादी 1999 में हुई थी। इसके बाद पति ने 2016 में तलाक के लिए याचिका फाइल की। 2019 में पलवल की कोर्ट ने तलाक को मंजूरी दे दी। कोर्ट को पता चला कि महिला दो बेटियों के साथ 2016 से ही अलग रह रही है। वह अपनी सास और ननद के साथ नहीं रहना चाहती है। महिला चाहती थी कि उसका पति सास और ननद को छोड़कर उसके साथ बाहर रहे। इसी तरह के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यह क्रूरता का मामला है।
कोर्ट ने यह भी देखा कि महिला ब्रह्माकुमारीज संगठन से जुड़ी हुई है। इसलिए उसका दांपत्य् सुख में कोई रुचि नहीं है। वहीं 2016 से ही अलग-अलग रहने के बाद भी दोनों ने कभी एकसाथ आने की कोशिश नहीं की। कोर्ट ने कहा कि दोनों के बीच का रिश्ता खत्म हो चुका है। वे दोनों भावनात्मक रूप से भी एक दूसरे से जुड़े नहीं हैं। कोर्ट ने यह भी कहा कि फैमिली कोर्ट ने किसी तरह के मुआवजे का ऐलान नहीं किया है। ऐसे में पति को एक बार में ही तीन महीने के अंदर 5 लाख रुपये की एलिमनी महिला को देनी है।

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