नई दिल्ली
दिल्ली एक बार फिर गंभीर प्रदूषण स्तर से जूझ रही है, जिससे शहर की वायु गुणवत्ता खतरनाक श्रेणी में पहुंच गई है. वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) को प्रदूषण की निगरानी करने और विभिन्न राज्यों को उचित उपाय करने के लिए मार्गदर्शन देने की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी गई है. वायु प्रदूषण का मुख्य कारण पंजाब और हरियाणा में जलाई जाने वाली पराली को माना जाता है, लेकिन इस साल पराली जलाने पर रोक लगाने के बावजूद भी दिल्ली में प्रदूषण का स्तर इस साल रिकॉर्ड तोड़ रहा है.
प्रदूषण में खतरनाक वृद्धि के लिए CAQM द्वारा पहचाने गए प्रमुख कारकों में से एक नवंबर में देखा गया असामान्य मौसम पैटर्न है. इंडिया टुडे से खास बातचीत में, आयोग के एक तकनीकी सदस्य एसडी अत्री ने बताया कि पिछले साल नवंबर में घने कोहरे ने मौसमी गतिविधियों को काफी हद तक बदल दिया है. घना कोहरा, जो पहले इस अवधि में असामान्य था ने वायु गुणवत्ता को गंभीर रूप से प्रभावित किया है, जिससे दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में प्रदूषण का संकट बढ़ गया है.
दिल्ली में क्यों घुट रहा है लोगों का दम?
पिछले दो हफ़्तों में बढ़े प्रदूषण स्तर ने आयोग के लिए काफी चिंता पैदा कर दी है. जिससे मौसम की स्थिति पर फिर से ध्यान केंद्रित किया जा रहा है क्योंकि यह एक प्रमुख कारक है. एसडी अत्री ने बताया कि पिछले 20 साल में औसतन नवंबर में आधे दिन तक घना कोहरा दर्ज किया जाता था. हालांकि, इस साल लगातार और तीव्र धुंध ने स्थिति को जटिल बना दिया है, जिससे प्रदूषण का स्तर बढ़ गया है, जो लोगों के स्वास्थ्य के लिए बड़ी समस्या है.
हाल के वर्षों में वैश्विक तापमान वृद्धि और जलवायु परिवर्तन की चुनौतियां दुनिया भर के शहरी वातावरण में तेजी से देखने को मिल रही हैं. कई दशकों से भारतीय मौसम विभाग से जुड़े एक अनुभवी विशेषज्ञ अत्रेय ने बताया कि कैसे ये वैश्विक घटनाएं दिल्ली के बढ़ते प्रदूषण स्तर में महत्वपूर्ण योगदान देती हैं.
बारिश की कमी के कारण भी बढ़ा प्रदूषण
आमतौर पर अक्टूबर और नवंबर के महीनों में पश्चिमी विक्षोभ के कारण भारत के मैदानी इलाकों में बारिश होती है. हालांकि, इस साल बारिश नहीं हुई है. बारिश ना होने से एक प्राकृतिक तंत्र को नष्ट हो गया है, जो आमतौर पर प्रदूषकों को फैलाने और वायु गुणवत्ता में सुधार करने में मदद करता है. बारिश की कमी ने दिल्ली में प्रदूषण संकट को बढ़ा दिया है, जहां वायु गुणवत्ता खतरनाक स्तर तक गिर गई है.
इंडिया टुडे से बातचीत में अत्री ने वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) के सामने प्रदूषण के स्तर की निगरानी और नियंत्रण में आने वाली चुनौतियों पर जोर दिया. हालांकि, आयोग स्थिति पर कड़ी नज़र रखता है, लेकिन मौसम और वायुमंडलीय कारकों को नियंत्रित करना लगभग असंभव है. ये कारक प्रदूषकों के फैलाव और सांद्रता को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. हवा की गति से लेकर हवा की दिशा तक हर तत्व इस बात को प्रभावित करता है कि प्रदूषक दिल्ली में कैसे पहुंचते हैं और कैसे बसते हैं. दुर्भाग्य से पिछले दो हफ़्तों में ये कारक अनुकूल नहीं रहे हैं, जिससे हवा में स्थिरता बनी हुई है और प्रदूषण में वृद्धि हुई है.
सीएक्यूएम द्वारा दी गई जानकारी दिल्ली और इसी तरह के शहरी क्षेत्रों में वायु प्रदूषण को संबोधित करने की जटिलता को रेखांकित करती है. चूंकि ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन मौसम के पैटर्न को बदलना जारी रखते हैं इसलिए नीति निर्माताओं के लिए वायु गुणवत्ता को प्रबंधित करने के लिए समाधान तैयार करते समय इन कारकों पर विचार करना अनिवार्य है. इन वैश्विक मुद्दों से उत्पन्न प्रदूषण चुनौतियों का प्रभावी ढंग से मुकाबला करने के लिए दीर्घकालिक रणनीतियों में जलवायु लचीलापन शामिल होना चाहिए.
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