मुंबई
पांच साल के सीएम, फिर 72 घंटे के मुख्यमंत्री, नेता प्रतिपक्ष और फिर ढाई साल के डिप्टी सीएम। पिछले 10 साल तक अलग-अलग रोल में देवेंद्र फडणवीस महाराष्ट्र की राजनीति की राजनीति के हीरो बने रहे। अब पांच दिसंबर को वह तीसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने की तैयारी कर रहे हैं। महाराष्ट्र में अब पांच साल के मराठा राज के बाद 'पेशवा' की 'पेशवाई' की चलेगी। बीजेपी ने फडणवीस के नाम को सीएम पद के लिए फाइनल कर लिया है। चार दिसंबर को सुबह 10 बजे विधायक दल की बैठक में पर्यवेक्षक निर्मला सीतारमन और विजय रूपाणी की मौजूदगी में उनके नाम पर मुहर लग जाएगी।
महाराष्ट्र के पहले ब्राह्मण नेता, जो दूसरी बार सीएम बनेंगे
मराठा इतिहास में पंतप्रधान यानी 'पेशवा' अपने कूटनीति और युद्धनीति के लिए जाने जाते थे। देवेंद्र फडणवीस के प्रशंसक भी उन्हें 'पेशवा' और देवा भाऊ ही कहते हैं। देवेंद्र फडणवीस पहले भी दो बार महाराष्ट्र के सीएम रह चुके हैं, मगर उनके लिए यह कुर्सी 'लॉलीपॉप' की तरह नहीं मिली। हर बार उन्होंने बड़े चैलेंज को स्वीकार किया और हर दांव से पार्टी को जीत दिलाई। उनकी खासियत यह है कि उन्होंने युवा पार्षद के तौर पर राजनीति में एंट्री ली है, इसलिए वह जनता और कार्यकर्ताओं के नब्ज को पहचानते हैं। देवेंद्र फडणवीस संघ के 'लाडले' हैं और शाह-मोदी के प्रिय भी। काबिलियत के कारण ही वह मराठा राजनीति वाले राज्य में दूसरे ब्राह्मण सीएम बने। महाराष्ट्र के पहले ब्राह्मण सीएम शिवसेना के नेता मनोहर जोशी थे, मगर वह पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर सके थे।
कांग्रेस-एनसीपी के 15 साल के शासन का किया था अंत
2014 में पहली बार देवेंद्र फडणवीस जब सीएम बने थे, तब उन्होंने एनसीपी-कांग्रेस के 15 साल के शासन का अंत किया था। फडणवीस ने विधानसभा से सड़क तक कांग्रेस-एनसीपी शासन में हुए सिंचाई घोटाले को लेकर आवाज बुलंद की। मोदी लहर के बीच प्रदेश अध्यक्ष देवेंद्र ने चुनाव का ताना-बाना बुना और जीत हासिल की। दूसरी बार भी एंटी इम्कबेंसी को दरकिनार कर गठबंधन के साथ बहुमत हासिल किया, मगर सत्ता हासिल नहीं कर सके। 72 घंटे की सरकार बनाई, तब उन्होंने शरद पवार से बातचीत की थी। जब सरकार गिरी, तब फडणवीस ने विधानसभा में चेतावनी के लहजे में पवार और ठाकरे को एक शेर सुनाया था। 'मेरा पानी उतरता देख, मेरे किनारे पर घर मत बसा लेना। मैं समंदर हूं…लौटकर आऊंगा।' ढाई साल बाद ही शिवसेना दो हिस्सों में टूट गई। एनसीपी के दो टुकड़े हो गए। बीजेपी को फडणवीस सत्ता में ले आए। 2024 में एक बार फिर अपनी रणनीति से एंटी इम्कबेंसी की हवा बदल दी। बीजेपी सर्वाधिक 132 सीटें जीती ही, महायुति ने भी इतिहास रच दिया।
नरेंद्र मोदी क्यों हुए देवेंद्र फडणवीस के मुरीद ?
रिपोर्टस के मुताबिक 2014 के लोकसभा चुनाव में रैली के दौरान नरेंद्र मोदी एयरपोर्ट पर बीजेपी के बड़े नेताओं से बातचीत कर रहे थे। वहां नितिन गडकरी, गोपीनाथ मुंडे और देवेंद्र फडणवीस भी थे। नरेंद्र मोदी ने पूछा कि महाराष्ट्र में बीजेपी को कितनी सीटें मिलेंगी? गडकरी और मुंडे 17-18 के आंकड़े तक पहुंच सके। तब देवेंद्र फडणवीस ने 40 सीटें जीतने की भविष्यवाणी की और यह सच साबित हुई। फिर विधानसभा चुनाव के दौरान फडणवीस ने शिवसेना से अलग चुनाव लड़ने के लिए केंद्रीय नेतृत्व को राजी किया। यह प्रयोग भी सफल हुआ। 2014 में पहली बार शिवसेना से अलग प्रदेश में बीजेपी अकेले चुनाव लड़ी और 125 सीटें हासिल कीं। उनकी इस रणनीति का बीजेपी के बड़े नेताओं ने विरोध किया था, मगर फडणवीस की रणनीति कामयाब रही और बीजेपी को महाराष्ट्र की पहली बार सत्ता मिली।
उद्धव ठाकरे के घमंड को तोड़ने वाले 'पेशवा'!
यह कहानी महाराष्ट्र की सियासी गलियारों में सुनाई जाती है। सच या झूठ, इसकी पुष्टि नहीं हो सकी है। 2014 के विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी के केंद्रीय नेताओं ने उद्धव ठाकरे को बातचीत का निमंत्रण दिया था। बताया जाता है कि उद्धव ठाकरे ने संदेश दिया कि बीजेपी नेता मातोश्री में आकर उनसे चर्चा करे। यह बात बीजेपी को पसंद नहीं आई। तब देवेंद्र फडणवीस ने इसे चुनौती के तौर पर लिया। पहले बीजेपी अकेले चुनाव लड़कर बड़ी पार्टी बनी। 44 साल की उम्र में जब पहली बार सीएम बने, तब फडणवीस ने पहली बार शिवसेना को गठबंधन का जूनियर पार्टनर बनाया। पांच साल तक सरकार चलाई। दूसरी बार बीजेपी और शिवसेना साथ में उतरी। महायुति को बहुमत मिला, मगर उद्धव ठाकरे सीएम पोस्ट पर अड़ गए। देवेंद्र फडणवीस ने एनसीपी के क्षणिक बागी अजित पवार के साथ 80 घंटे के लिए सरकार बनाई, मगर चल नहीं सकी। फडणवीस विपक्ष में बैठे और उद्धव ठाकरे की शिवसेना ढाई साल में ही दो हिस्सों में बंट गई। जब चुनाव में उतरे तो ठाकरे की सेना को 20 पर समेट दिया।
धीरे-धीरे देवेंद्र बनते गए मराठा राजनीति के सूरमा
देवेंद्र फडणवीस के पिता गंगाधर फडणवीस जनसंघ और बीजेपी के नेता रहे। नागपुर के गंगाधर फडणवीस को नितिन गडकरी भी अपना राजनीतिक गुरु बताते रहे हैं। 22 साल की उम्र में फडणवीस ने नागपुर के पार्षद से राजनीति शुरूआत की, फिर 27 साल की आयु में युवा मेयर बनने का रेकॉर्ड बनाया। 1999 में दक्षिण पश्चिम नागपुर सीट से विधानसभा चुनाव लड़े और लगातार जीतते रहे। बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष बने। 2014 के विधानसभा चुनाव से पहले गोपीनाथ मुंडे के आकस्मिक निधन के बाद नेतृत्व की चर्चा चल रही थी। नितिन गडकरी और एकनाथ खडसे जैसे दिग्गज कतार में थे। चुनाव के दौरान दिल्ली में नरेंद्र, महाराष्ट्र में देवेंद्र का नारा काफी लोकप्रिय हुआ। देखते ही देखते वह बीजेपी के पोस्टर बॉय बन गए। अपनी बेदाग छवि और लोकप्रियता के कारण आरएसएस ने भी उन्हें नेक्स्ट जेनरेशन के नेता के तौर पर चुना, जिसमें वह खरे साबित हुए। उन्होंने गठबंधन की सरकार चलाकर अपने नेतृत्व क्षमता को भी साबित कर दिया।
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