नई दिल्ली
भारत ने एक के बाद एक दूसरे देशों से 18 फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (FTA) पर हस्ताक्षर किया है, लेकिन एक्सपोर्ट में उतनी तेजी से नहीं बढ़ रहा है. ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) का कहना है कि नए समझौतों पर हस्ताक्षर करने के बजाय मौजूदा समझौतों से निर्यात में ठोस लाभ सुनिश्चित करने पर फोकस करना चाहिए. खासकर इलेक्ट्रॉनिक्स, इंजीनियरिंग और टेक्सटाइल्स सेक्टर में, जहां से ज्यादा लाभ मिल सकता है.
रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 2025 में भारत का कुल निर्यात 825 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया था, लेकिन वित्त वर्ष 2026 के दौरान इसमें मामूली इजाफा हुआ है और यह करीब 850 अरब अमेरिकी डॉलर तक होने का अनुमान है. ऐसा माना जा रहा है कि अमेरिकी टैरिफ के असर कारण इसमें ज्यादा इजाफा नहीं हुआ है.
कमजोर इंटरनेशलन डिमांड और बढ़ते सेफ उपायों के कारण माल निर्यात में कोई खास बदलाव नहीं होने की उम्मीद है, जबकि सर्विस सेक्टर एक्सपोर्ट 400 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक हो सकता है. यह भारत के समग्र व्यापार प्रदर्शन को सपोर्ट कर सकता है.
भारत ने की 18 एफटीए डील
GTRI की रिपोर्ट में कहा गया है कि 18 मुक्त व्यापार समझौतों (FTA) पर पहले ही हस्ताक्षर हो चुके हैं और साल 2026 में और भी हस्ताक्षर होने की संभावना है. ऐसे में भारत की प्राथमिकता समझौतों पर हस्ताक्षर करने से हटकर मुक्त व्यापार समझौतों से वास्तविक निर्यात लाभ प्राप्त करने की ओर होनी चाहिए.
GTRI ने इस बात पर फोकस किया है कि भारत पिछले कई सालों में सबसे कठिन ग्लोबल ट्रेड सिचुएशन के साथ 2026 में एंट्री ल रहा है. विकसित अर्थव्यवस्थाओं में बढ़ते संरक्षणवाद, वैश्विक मांग में मंदी और जलवायु परिवर्तन से जुड़ी नई व्यापार बाधाएं भारत के निर्यात बढ़ाने के प्रयासों के साथ मेल खा रही हैं. इससे बाजार में विस्तार के बजाय मौजूदा स्थिति को बनाए रखने पर ज्यादा फोकस हो रहा है.
टैरिफ सबसे बड़ा दबाव
संयुक्त राज्य अमेरिका एक महत्वपूर्ण दबाव के तौर पर उभरा है. डोनाल्ड ट्रम्प ने विश्व व्यापार संगठन के मानदंडों को दरकिनार करते हुए एकतरफा भारी टैरिफ लागू किया है. मई और नवंबर 2025 के बीच मौजूदा 50 प्रतिशत टैरिफ के कारण भारत का अमेरिका को निर्यात लगभग 21 प्रतिशत गिर गया.
निर्यात में और गिरावट आ सकती है
जीटीआरआई ने चेतावनी दी है कि जब तक अमेरिका भारत द्वारा रूस से तेल की खरीद पर लगाए गए अतिरिक्त 25 प्रतिशत दंडात्मक टैरिफ को वापस नहीं लेता या कोई व्यापार समझौता नहीं करता, भारत के सबसे बड़े बाजार को निर्यात में और गिरावट आ सकती है.
भारत के लिए यूरोप से भी चुनौती
यूरोप एक अलग चुनौती पेश कर रहा है. यूरोपीय संघ 1 जनवरी, 2026 से अपना कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज्म लागू करेगा, जिसके तहत आयात पर कार्बन टैक्स लाया जाएगा. अभी ये टैक्स लागू होने से पहले ही यूरोपीय संघ को भारत के इस्पात निर्यात में लगभग 24 प्रतिशत की गिरावट आई है.
हालांकि इन चुनौतियों के बावजूद, रिपोर्ट में लचीलेपन के संकेत मिले हैं. अमेरिका को निर्यात में गिरावट के बावजूद अन्य ग्लोबल मार्केट को शिपमेंट में करीब 5.5 फीसदी की तेजी है. जीटीआरआई ने इस बात पर जोर दिया कि वैश्विक भू-राजनीति पर सीमित प्रभाव के साथ, भारत को अपने देश पर फोकस करना चाहिए.

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