लखनऊ
स्वामी प्रसाद मौर्य को कथित रूप से बिना तलाक दूसरी शादी कराने, मारपीट, गालीगलौज, जानमाल की धमकी व साज़िश रचने के मामले में हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने राहत देने से इनकार कर दिया है। न्यायालय ने कहा है कि स्वामी प्रसाद के विरुद्ध प्रथम दृष्टया आरोप हैं, जिन पर ट्रायल कोर्ट में ही विचार हो सकता है। इन टिप्पणियों के साथ कोर्ट ने परिवाद की कार्यवाही और गैर जमानती वारंट निरस्त करने की मांग वाली स्वामी प्रसाद की याचिका खारिज कर दी है। यह आदेश न्यायमूर्ति जसप्रीत सिंह की एकल पीठ ने पारित किया।
सुशांत गोल्फ सिटी निवासी दीपक स्वर्णकार ने अदालत में संघमित्रा और स्वामी प्रसाद मौर्य समेत अन्य के ख़िलाफ़ याचिका दाखिल की है। वादी का आरोप है कि वह और संघमित्रा वर्ष 2016 से लिव इन रिलेशन में थे। कहा गया है कि संघमित्रा और उसके पिता स्वामी प्रसाद मौर्य ने वादी को बताया कि संघमित्रा की पूर्व शादी से तलाक़ हो गया है, लिहाज़ा वादी ने तीन जनवरी 2019 को संघमित्रा से घर पर शादी कर लिया, हालांकि बाद में जब उसे पता चला तो शादी की बात उजागर न होने पाए, इसलिए उस पर जानलेवा हमला कराया गया।
परिवाद को चुनौती देते हुए स्वामी प्रसाद की ओर से दलील दी गई कि याची के विरुद्ध कोई ठोस आरोप नहीं लगाए गए हैं और पत्रावली पर जो बयान परिवादी का उपलब्ध है, वह विश्वसनीय नहीं लगता। कहा गया कि जो घटनाएं बताई गई हैं, वे भी श्रंखलाबद्ध नहीं हैं और परिवाद बदनीयती से दाखिल किया गया है। हालांकि न्यायालय ने इन दलीलों को अस्वीकार करते हुए कहा कि आरोपों की सत्यता की जांच ट्रायल के दौरान ही हो सकती है।
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