
नई दिल्ली
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की एक अहम रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए भीषण आतंकी हमले की जिम्मेदारी ‘द रेसिस्टेंस फ्रंट’ (टीआरएफ) ने दो बार ली थी और हमले की साइट की तस्वीरें भी जारी की थीं. यह हमला 22 अप्रैल 2025 को हुआ था, जिसमें आतंकियों ने 26 पर्यटकों की जान ले ली थी.
यह जानकारी संयुक्त राष्ट्र की 1267 इस्लामिक स्टेट (दाएश) और अल-कायदा प्रतिबंध समिति को सौंपी गई 36वीं सहायता और निगरानी टीम की रिपोर्ट में दी गई है. रिपोर्ट में कहा गया कि पांच आतंकियों ने जम्मू-कश्मीर के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल पहलगाम में हमला किया था. उसी दिन टीआरएफ ने इस हमले की जिम्मेदारी ली थी और साथ ही हमले की जगह की एक तस्वीर भी प्रकाशित की गई थी. अगले दिन एक बार फिर टीआरएफ ने जिम्मेदारी दोहराई, लेकिन 26 अप्रैल को उसने अपना दावा वापस ले लिया और इसके बाद समूह की ओर से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया.
‘लश्कर की मदद के बिना नहीं हो सकता था पहलगाम हमला’
रिपोर्ट के मुताबिक, एक सदस्य देश ने कहा है कि यह हमला पाकिस्तान-आधारित आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा (LeT) की मदद के बिना संभव नहीं था. वहीं एक अन्य सदस्य देश ने टीआरएफ और लश्कर को एक ही संगठन करार दिया है. हालांकि, एक सदस्य देश ने इस बात को नकारते हुए लश्कर को ‘अब सक्रिय नहीं’ बताया है.
संयुक्त राष्ट्र की यह रिपोर्ट ऐसे समय आई है जब अमेरिका ने टीआरएफ को विदेशी आतंकवादी संगठन (FTO) और वैश्विक आतंकवादी के रूप में नामित कर दिया है. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि क्षेत्रीय संबंध काफी संवेदनशील स्थिति में हैं और आतंकी संगठन इन तनावों का फायदा उठाने की कोशिश कर सकते हैं.
पाकिस्तान के दबाव से हटा था TRF का नाम
गौरतलब है कि पहलगाम हमले के बाद 25 अप्रैल को सुरक्षा परिषद ने एक प्रेस बयान जारी कर दोषियों को सजा दिलाने की मांग की थी, लेकिन टीआरएफ का नाम उस बयान में नहीं था. विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने संसद में बताया कि पाकिस्तान के दबाव में टीआरएफ का नाम उस प्रेस बयान से हटवा दिया गया. भारत ने हमले के जवाब में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ शुरू किया था, जिसमें पाकिस्तान और पाकिस्तान-अधिकृत कश्मीर (PoK) में आतंकियों के ठिकानों को निशाना बनाया गया.
रिपोर्ट में इस्लामिक स्टेट के खुरासान मॉड्यूल को दक्षिण एशिया और मध्य एशिया में सबसे बड़ा खतरा बताया गया है. ISIL-K के पास करीब 2,000 लड़ाके हैं और यह संगठन अफगानिस्तान और पड़ोसी देशों में बच्चों तक को आत्मघाती हमलों की ट्रेनिंग दे रहा है. रिपोर्ट में कहा गया है कि उत्तरी अफगानिस्तान और पाकिस्तान सीमा के पास मदरसों में लगभग 14 वर्ष की उम्र के बच्चों को आत्मघाती हमलावर बनने की ट्रेनिंग दी जा रही है.
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