इंदौर
मध्य प्रदेश में बीजेपी की नई कार्यकारिणी की घोषणा ने राजनीति में हलचल मचा दी है. पहले प्रदेश स्तर की टीम बनी, फिर इंदौर शहर की कार्यकारिणी घोषित हुई. इन दोनों में कई नए चेहरे शामिल किए गए हैं. इससे सवाल उठ रहा है कि क्या इंदौर और मालवा क्षेत्र में लंबे समय से चले आ रहे पुराने गुटों का दौर अब खत्म होने की ओर है?
इंदौर की राजनीति में दशकों से दो बड़े नाम हावी रहे हैं – पूर्व लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन, जिन्हें प्यार से ‘ताई’ कहा जाता है, और कैलाश विजयवर्गीय, जो ‘भाई’ के नाम से मशहूर हैं. दोनों के अपने-अपने समर्थक हैं और कई बार इनके बीच खींचतान भी सामने आई है. लेकिन नई सूची में इन दोनों गुटों के पुराने चेहरों को जगह नहीं मिली. इसके बजाय युवा और नए नेताओं को मौका दिया गया है.
सबसे चर्चित नाम है गौरव रणदिवे का. उन्हें प्रदेश कार्यकारिणी में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी मिली है. गौरव विजयवर्गीय के करीबी माने जाते हैं. उनकी नियुक्ति के बाद कैलाश विजयवर्गीय ने एक बयान दिया – “मैं जो पौधा लगाता हूं, उसे कभी नहीं काटता.” यह बात सुनने में साधारण लगती है, लेकिन राजनीतिक गलियारों में इसे गहरा संदेश माना जा रहा है. मतलब साफ है कि विजयवर्गीय अपने चुने हुए लोगों को आगे बढ़ाना चाहते हैं और उन्हें मजबूत करना उनका पुराना तरीका है.
इंदौर नगर कार्यकारिणी में भी यही पैटर्न दिखा. ताई और भाई के पुराने साथियों को बाहर रखा गया. उनकी जगह नए कार्यकर्ताओं और युवा नेताओं को शामिल किया गया. कुछ पुराने नेता इससे नाराज भी हैं. पार्टी के अंदर खुसुर-फुसुर की खबरें आ रही हैं, लेकिन बीजेपी हाईकमान ने फिलहाल स्थिति को संभाल लिया है. असंतोष को दबाने की कोशिश की जा रही है.
दरअसल, जब प्रदेश कार्यकारिणी में गौरव रणदिवे को जगह मिली तो कैलाश विजयवर्गीय का एक बयान सुर्खियों में रहा। उन्होंने कहा- मैं जो पौधा लगाता हूं, उसे काटता नहीं हूं। जानकारों के मुताबिक, प्रदेश कार्यकारिणी में गौरव रणदिवे को शामिल करना इंदौर से एक नए पावर सेंटर की शुरुआत माना जा रहा है।
इसके बाद जब इंदौर नगर कार्यकारिणी का ऐलान हुआ तो उसमें भी ताई और भाई गुट के चेहरे लगभग गायब थे। इस कार्यकारिणी में नए चेहरों को आगे बढ़ाया गया है। इस बदलाव के बाद असंतोष के सुर भी सुनाई दिए हैं, मगर बीजेपी ने जैसे-तैसे डैमेज कंट्रोल किया है। ताई और भाई के गुट को तवज्जो न देकर नए गुटों के नेताओं को आगे बढ़ाकर पार्टी क्या मैसेज देना चाहती है?
क्या 2028 के विधानसभा चुनाव के लिहाज से नई लीडरशिप तैयार हो रही है? भास्कर ने इसे लेकर एक्सपर्ट्स से बात की।
राजनीतिक जानकार मानते हैं कि यह बदलाव 2028 के विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखकर किया गया है. बीजेपी नहीं चाहती कि पुरानी गुटबाजी पार्टी को नुकसान पहुंचाए. इसलिए नई पीढ़ी को तैयार करने का प्लान है. इंदौर बीजेपी का गढ़ रहा है. यहां से आठ विधानसभा सीटें हैं और सभी पर पार्टी का कब्जा है. लेकिन लंबे समय तक एक ही चेहरों पर निर्भर रहने से कार्यकर्ताओं में थकान आ सकती है. नई लीडरशिप से जोश भरने की कोशिश है.
कुल मिलाकर, यह बदलाव संगठन को मजबूत करने और भविष्य की तैयारी का हिस्सा लगता है. पुरानी गुटबाजी को कम करने की दिशा में यह एक बड़ा कदम है. अब देखना यह है कि नए चेहरे कितना असर दिखा पाते हैं और क्या वाकई इंदौर की राजनीति में नया दौर शुरू हो रहा है. पार्टी के भीतर एकता बनी रहेगी या फिर नई खींचतान शुरू होगी – यह आने वाला वक्त बताएगा. लेकिन फिलहाल बीजेपी ने साफ संदेश दे दिया है कि अब समय नई पीढ़ी का है.
ताई-भाई के युग से हटकर युवाओं की नई खेमेबंदी इंदौर की बीजेपी में दशकों तक सत्ता के दो ही केंद्र माने जाते रहे- 'भाई' यानी कैलाश विजयवर्गीय और 'ताई' यानी सुमित्रा महाजन। संगठन से लेकर टिकट वितरण तक, हर फैसला इन्हीं दो ध्रुवों के इर्द-गिर्द घूमता था। लेकिन अब यह तस्वीर बदल रही है। एक नया युवा नेतृत्व आकार ले रहा है, जो इन दोनों के साये से बाहर अपनी पहचान बना रहा है। शहर की राजनीति में अब दो नए शक्ति केंद्र उभरते दिख रहे हैं।
1. नया युवा गुट: इस गुट का नेतृत्व गौरव रणदिवे, विधायक मनोज पटेल, एकलव्य गौड़ और सावन सोनकर कर रहे हैं। ये चारों नेता अक्सर एक साथ पोस्टरों और कार्यक्रमों में नजर आते हैं। यह गुट सोशल मीडिया पर बेहद सक्रिय है और राजनीति के नए तौर-तरीकों पर जोर देता है।
2. पुराना संरचनात्मक गुट: इस गुट का नेतृत्व विधायक रमेश मेंदोला, विधायक गोलू शुक्ला और नवनियुक्त नगर अध्यक्ष सुमित मिश्रा के हाथ में माना जा रहा है। नगर टीम में इनके समर्थकों को ज्यादा पद मिले हैं, जिससे संगठन के भीतर इनका प्रभाव स्पष्ट दिखता है।
पुराने गुटों को नई कार्यकारिणी में ज्यादा तवज्जो नहीं पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन (ताई) के समर्थकों को इस कार्यकारिणी में कोई स्थान नहीं मिला है। पूर्व पार्षद सुधीर देड़गे और उनके दो अन्य समर्थकों के नामों पर चर्चा थी, लेकिन उन्हें भी शामिल नहीं किया गया। सांसद शंकर लालवानी खेमे से कंचन गिदवानी को मंत्री बनाया गया है, जबकि महापौर के करीबी भरत पारख को उपाध्यक्ष पद मिला है।
सूत्रों के अनुसार, सांसद शंकर लालवानी ने नगर टीम के लिए चार नाम सुझाए थे, जिनमें से केवल एक नाम (कंचन गिदवानी) को जगह मिली। इसमें भी वरिष्ठता का ध्यान नहीं रखा गया। मंत्री कैलाश विजयवर्गीय के गुट के नेताओं को भी कार्यकारिणी में अपेक्षित स्थान नहीं मिला। विजयवर्गीय समर्थक भूपेंद्र केसरी को महामंत्री पद की चर्चा के बाद उपाध्यक्ष पद से ही संतोष करना पड़ा। वहीं, गोविंद पंवार को सह कार्यालय मंत्री बनाया गया है।

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