
नई दिल्ली
रूसी तेल आयात को लेकर भारत पश्चिमी देशों के निशाने पर है। वे भारत की लगातार आलोचना कर रहे हैं। हालांकि, भारत ने अब और ज्यादा मुखर होकर इसका जवाब दिया है। ब्रिटेन में भारत के उच्चायुक्त विक्रम दोरईस्वामी ने टाइम्स रेडियो को दिए एक इंटरव्यू में पश्चिमी देशों की दोहरी नैतिकता पर खरी-खरी सुनाई है। भारत की स्वतंत्र विदेश नीति का जिक्र करके उन्होंने साफ संदेश दिया है कि भारत किसी की 'कठपुतली' नहीं बन सकता। वह अपनी अर्थव्यवस्था को भू-राजनीतिक दबाव के आगे झुकने नहीं देगा।
विक्रम दोरईस्वामी ने कहा कि भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा ऊर्जा उपभोक्ता है। ऐसे में भारत से यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि वह भू-राजनीतिक चिंताओं के कारण अपनी अर्थव्यवस्था को बंद कर दे। उन्होंने कहा, 'भारत दुनिया में ऊर्जा की खपत करने वाला तीसरा सबसे बड़ा देश है। हम अपनी जरूरतों का 80% से ज्यादा आयात करते हैं। आप हमसे क्या करवाना चाहते हैं? क्या हम अपनी अर्थव्यवस्था को बंद कर दें?' उन्होंने यह बात ऊर्जा की बढ़ती कीमतों और दूसरे देशों के फैसलों की वजह से सप्लाई में आई कमी के बारे में बताते हुए कही।
दोरईस्वामी ने यह भी कहा, 'हम उन देशों के साथ दूसरे देशों के रिश्ते भी देखते हैं जो अपनी सुविधा के लिए बनाए गए हैं। लेकिन, वे देश हमारे लिए परेशानी का कारण बनते हैं। क्या हम आपसे वफादारी का टेस्ट देने के लिए कहेंगे?'
ईयू ने रूस पर लगाए हैं नए प्रतिबंध
यूरोपीय संघ (ईयू) ने रूस से होने वाले तेल निर्यात से मिलने वाले पैसे को रोकने के लिए नए प्रतिबंध लगाए हैं। इन प्रतिबंधों में भारत की वाडिनार रिफाइनरी भी शामिल है। इसमें रूस की कंपनी रोसनेफ्ट की भी हिस्सेदारी है। ईयू के 18वें दौर के प्रतिबंधों में 105 और जहाजों को शामिल किया गया है। रिफाइंड तेल के व्यापार पर भी रोक लगाई गई है।
जब विक्रम दोरईस्वामी से पूछा गया कि क्या रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ भारत की बढ़ती नजदीकी चिंता का विषय है तो उन्होंने कहा कि रूस के साथ भारत का रिश्ता लंबे समय की रणनीतिक और आर्थिक सोच पर आधारित है। उन्होंने कहा, 'इनमें से एक हमारा लंबे समय से चला आ रहा सुरक्षा संबंध है। यह उस दौर से चला आ रहा है जब हमारे कुछ पश्चिमी साझेदार हमें हथियार नहीं बेचते थे। लेकिन, हमारे पड़ोस के देशों को बेचते थे, जो उनका इस्तेमाल सिर्फ हम पर हमला करने के लिए करते थे।'
यूरोप अपना रहा है डबल स्टैंडर्ड
दोरईस्वामी ने यह भी कहा कि भारत को वैश्विक प्रतिस्पर्धा और कीमतों में बदलाव के कारण पारंपरिक ऊर्जा बाजारों से बाहर कर दिया गया है। उन्होंने कहा, 'आज हमारा जो ऊर्जा संबंध है, वह इसलिए है क्योंकि बाकी सभी लोग उन स्रोतों से ऊर्जा खरीद रहे हैं जिनसे हम पहले खरीदते थे। इसलिए हमें ऊर्जा बाजार से काफी हद तक बाहर कर दिया गया है और कीमतें बढ़ गई हैं।'
दोरईस्वामी ने इस बात पर जोर दिया कि यूरोप भी रूस से तेल खरीदता है। रेयर अर्थ (दुर्लभ पृथ्वी) का आयात करता है। उन्होंने कहा, 'हम दुनिया में क्रूड ऑयल के चौथे सबसे बड़े रिफाइनर हैं। यूरोप के कई देश हमसे रिफाइंड ऑयल खरीदते हैं। साथ ही, हमारे कई यूरोपीय साझेदार रेयर अर्थ और अन्य ऊर्जा उत्पाद (शायद तेल नहीं) उन्हीं देशों से खरीदते रहते हैं जिनसे वे हमें खरीदने से मना कर रहे हैं। क्या आपको यह थोड़ा अजीब नहीं लगता?'
HMX का नाम सुनते ही दुनिया के कई देशों की नींद उड़ जाती है, क्योंकि यह वही केमिकल है जिसका इस्तेमाल मिसाइल, टॉरपीडो, और अन्य उन्नत हथियार प्रणालियों में किया जाता है. लेकिन भारत की इस कंपनी ने साफ कहा है कि उसने यह पदार्थ पूरी तरह भारतीय नियमों के तहत और सिर्फ ‘औद्योगिक उपयोग’ के लिए भेजा है, न कि सैन्य मकसद से. रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत से यह शिपमेंट रूस की दो एक्सप्लोसिव मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों को गया, जिनमें से एक ‘प्रोम्सिंटेज’ नामक कंपनी है. यूक्रेन की सुरक्षा एजेंसी SBU ने दावा किया है कि इस रूसी कंपनी के सेना से सीधे संबंध हैं, और अप्रैल में इसी के एक फैक्ट्री पर ड्रोन हमला भी किया गया था. हालांकि, ‘आइडियल डेटोनेटर’ का कहना है कि ‘यह सिविल इस्तेमाल वाला विस्फोटक है, न कि कोई सैन्य ग्रेड मटेरियल.’
चीन-अमेरिका भिड़ गए
उधर, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक में अमेरिका ने चीन को भी लपेटे में लेते हुए कहा कि ‘अगर चीन शांति चाहता है, तो उसे रूस को जंग का सामान भेजना बंद करना होगा.’ अमेरिका की कार्यवाहक राजदूत डोरोथी शीया ने चीन पर सीधे आरोप लगाते हुए कहा कि ‘बीजिंग के ड्रोन और हथियार रूस की मिसाइल और ड्रोन हमलों में मिल रहे हैं.’ जवाब में चीन के डिप्टी एम्बेसडर ने कहा, ‘हम युद्ध का हिस्सा नहीं हैं और हमने डुअल यूज मटेरियल्स पर कड़ी पाबंदी लगाई है. अमेरिका दूसरों पर दोष मढ़ने के बजाय शांति की दिशा में कदम उठाए.’
जंग में झुलसा रूस, यूक्रेन का दावा
इसी बीच यूक्रेन की आर्मी ने दावा किया है कि फरवरी 2022 से लेकर अब तक रूस के 10,49,250 सैनिक मारे जा चुके हैं. सिर्फ पिछले 24 घंटों में रूस को 920 सैनिकों की क्षति हुई है. इसके अलावा रूस के 11,000 से ज्यादा टैंक, 48,000 ड्रोन और 28 जहाज भी तबाह हो चुके हैं. यूक्रेन और रूस के बीच दो साल से चल रही इस जंग में अब भारत, चीन और अमेरिका की भूमिका पर वैश्विक ध्यान केंद्रित होता जा रहा है.
यह पूछे जाने पर कि क्या भारत का 'रूस-भारत-चीन समझौते' में शामिल होना सही है, दोरईस्वामी ने साफ किया कि ऐसा कोई समझौता नहीं है। उन्होंने कहा, 'रूस-भारत-चीन नाम का कोई प्रस्ताव नहीं है। आरआईसी नाम का एक त्रिपक्षीय बैठक का तरीका था। यह किसी भी तरह का समझौता नहीं था… यह लंबे समय से नहीं हुआ है।' उन्होंने आगे कहा, 'इसके अलावा, ऐसा कोई ढांचा नहीं है जिसमें हम इन चीजों के बारे में बातचीत से ज्यादा कुछ देख रहे हों।'
क्या है दुनिया को मैसेज?
विक्रम दोरईस्वामी का यह जवाब इस बात को स्पष्ट करता है कि भारत किसी भी बड़े वैश्विक शक्ति गुट के प्रभाव में आकर अपनी विदेश नीति तय नहीं करेगा। भारत अपने राष्ट्रीय हितों को सर्वोपरि रखता है। इसमें उसकी ऊर्जा सुरक्षा, सैन्य आत्मनिर्भरता और आर्थिक विकास शामिल हैं। रूस के साथ भारत के संबंध दशकों पुराने हैं। इसमें किसी भी तरह के बदलाव की गुंजाइश की संभावना नहीं है।
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