50 मुस्लिम देश भी बेबस: इज़रायल के सामने भारत की कूटनीतिक जीत भारी

कतर 
कतर पर इजरायल के हमले के बाद मुस्लिम दुनिया में गुस्से का माहौल बना। अरब लीग और इस्लामी सहयोग संगठन (OIC) ने तुरंत आपात बैठकें बुलाईं और इजरायल की निंदा करते हुए कतर के साथ एकजुटता जताई। लेकिन  कार्रवाई के नाम पर केवल बयानबाजी देखने को मिली।

अरब देशों की "नाटो" योजना  धड़ाम
 बैठक में कुछ देशों ने इज़रायल के खिलाफ सैन्य मोर्चा खोलने और "अरब नाटो" गठित करने का सुझाव दिया।  पाकिस्तान ने इस विचार को जमकर हवा दी, लेकिन कतर और अन्य खाड़ी देशों की अनिच्छा से योजना ठंडे बस्ते में चली गई।अंत में 50 देशों का संयुक्त बयान केवल औपचारिक निंदा  तक सिमट गया।

विशेषज्ञों का तंज- कहां गया दम?
विशेषज्ञों ने कहा कि 1973 के युद्ध में अरब देशों ने  तेल निर्यात रोककर अमेरिका-इज़रायल पर दबाव बनाया था, जिससे युद्धविराम जल्दी संभव हुआ।आज जबकि ग़ाज़ा में मौतों का आंकड़ा  65,000  से ऊपर जा चुका है और संयुक्त राष्ट्र तक नरसंहार की चेतावनी दे रहा है, मुस्लिम देशों की चुप्पी उनकी  कमजोरी  उजागर करती है।

पाकिस्तान की चाल फेल
पाकिस्तान ने इस संकट को अवसर बनाने की कोशिश की। पीएम शहबाज शरीफ और विदेश मंत्री इशाक डार कतर पहुंचे और इजरायल विरोधी माहौल बनाने की कोशिश की। "अरब नाटो" के जरिए पाकिस्तान भारत के खिलाफ एक सुरक्षा कवच  चाहता था। मगर मुस्लिम देशों की बेरुख़ी ने पाकिस्तान की सारी मेहनत पर पानी फेर दिया।

भारत की कूटनीतिक जीत
अरब नाटो का न बनना भारत के लिए बड़ी कूटनीतिक जीत मानी जा रही है। अगर यह सैन्य गठबंधन बनता तो भारत अरब देशों के साथ अपने व्यापारिक रिश्ते और इज़रायल के साथ रक्षा साझेदारी के बीच फँस जाता। पाकिस्तान को भी भारत पर दबाव बनाने का मौका मिल जाता। मगर फिलहाल हालात ऐसे हैं कि भारत बिना कोई कदम उठाए ही मज़बूत स्थिति में है और पाकिस्तान की चाल नाकाम हो गई है।