
नई दिल्ली
देश में पहली बार ऐसा हुआ है कि राज्यपाल या राष्ट्र्पति की मंजूरी के बिना कोई विधेयक कानून बन चुका है। ये ऐतिहासिक घटना सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले के बाद हुई, जिसमें तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि द्वारा विधेयकों को मंजूरी न दिए जाने के मामले में सुनवाई हो रही थी। न्यायमूर्ति एसबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए आदेश दिया कि इन विधेयकों को उस तारीख से मंजूरी दी गई मानी जाएगी, जिस दिन इसे फिर से पेश किया गया था।
सुप्रीम कोर्ट ने की थी टिप्पणी
पीठ ने टिप्पणी की कि राज्यपाल ने विधेयकों को पहली बार में मंजूरी नहीं दी। जब इसे दोबारा भेजा गया, तो अब राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित नहीं किया जा सकता। बता दें कि इसके पहले सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल के रवैये पर कटाक्ष करते हुए कहा था कि विधेयकों में मुद्दों को खोजने में उन्हें तीन साल क्यों लगे। बता दें कि तमिलनाडु की सरकार और राज्यपाल के बीच गतिरोध लंबे समय से चला आ रहा है। तमिलनाडु की विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों को राज्यपाल की मंजूरी नहीं मिल पा रही थी। विधेयकों को लौटाने के बाद इन्हें दोबारा पारित कर राज्यपाल के पास भेजा गया था, फिर भी ये बिल मंजूरी के बिना लटके हुए थे।
10 विधेयक बन गए कानून
इसके बाद तमिलनाडु सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। राज्य सरकार ने राज्यपाल पर जानबूझकर विधेयकों में देरी करने और विकास को बाधित करने का आरोप लगाया था। अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद 10 विधेयक बिना राज्यपाल या राष्ट्रपति की मंजूरी के कानून बन गए है। इन विधेयकों में राज्य द्वारा संचालित विश्वविद्यालयों के कुलपतियों की नियुक्ति पर संशोधित नियम शामिल हैं। स्टालिन सरकार ने इसे भारतीय राज्यों के लिए एक बड़ी जीत बताते हुए अदालत का धन्यवाद दिया है।
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